Sharad Purnima 2025: शरद पूर्णिमा की रात चांदनी में खीर रखने की परंपरा को लेकर इस बार कुछ उलझनें हैं, क्योंकि इस दिन पंचक और भद्रा का साया भी है। यह रात चंद्रमा की विशेष महत्ता के लिए जानी जाती है, जब वह अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है। ऐसे में, जानें इस खास मौके पर खीर कब और कैसे रखी जा सकती है।
शरद पूर्णिमा का महत्व और परंपरा
शरद पूर्णिमा, जिसे कोजागरी पूर्णिमा भी कहा जाता है, अश्विन मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। इस दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं के साथ अमृत की वर्षा करता है। परंपरा के अनुसार, लोग इस रात चावल की खीर बनाते हैं और उसे बालकनी या छत पर चांदनी में रखते हैं। ऐसा माना जाता है कि चंद्रमा की किरणें खीर को अमृतमय बना देती हैं। इस खीर का प्रसाद अगले दिन ग्रहण किया जाता है और इसे भगवान को अर्पित किया जाता है। इस बार शरद पूर्णिमा सोमवार को पड़ रही है, जिससे इसका धार्मिक महत्व और भी बढ़ गया है।
पंचक और भद्रा का साया
इस वर्ष शरद पूर्णिमा पर पंचक और भद्रा का प्रभाव है, जो शुभ कार्यों में बाधा बन सकता है। पंचक 3 अक्टूबर से 8 अक्टूबर तक रहेगा, जबकि भद्रा 6 अक्टूबर को दोपहर 12:23 से रात 10:53 तक है। इस दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता, इसलिए खीर को चांदनी में रखने का सही समय रात 10:53 के बाद का है। चंद्रोदय शाम 5:27 पर होगा, लेकिन भद्रा के चलते खीर को चांदनी में रखने का उचित समय रात 10:53 बजे के बाद ही है।
चांदनी की खीर और मान्यताएं
पूर्णिमा की रात चंद्रमा की शक्तियों में वृद्धि होती है। चंद्रमा हर महीने 15 दिन घटता और 15 दिन बढ़ता है, लेकिन पूर्णिमा को वह पूर्ण रूप से दिखता है। शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की किरणें विशेष रूप से प्रभावशाली मानी जाती हैं। इसीलिए इस रात खीर को जाली से ढंककर रखा जाता है ताकि चांदनी का पूरा लाभ मिल सके। अगले दिन इसे भगवान को अर्पित कर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।
शरद पूर्णिमा की इस खास परंपरा को निभाते समय पंचक और भद्रा का ध्यान रखना जरूरी है। सही समय पर खीर को चांदनी में रखकर इस पर्व की शुभता का आनंद लिया जा सकता है। यह पर्व धार्मिक आस्था और परंपरा का सुंदर उदाहरण है, जो हमें प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाने की प्रेरणा देता है।


