शौर्य की निशानी पहुँची सीकर — जानिए, क्यों गूँज उठा विश्वविद्यालय परिसर

Rahish Khan
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सीकर। पंडित दीनदयाल उपाध्याय शेखावाटी विश्वविद्यालय, सीकर को भारतीय सेना ने पराक्रम और शौर्य के प्रतीक के रूप में ऐतिहासिक टैंक टी-55 और दो तोपों का अनमोल तोहफा दिया है। ये ‘युद्ध-ट्रॉफी’ अब विश्वविद्यालय परिसर में विद्यार्थियों और युवाओं को भारतीय सेना के अदम्य साहस, देशभक्ति और गौरवपूर्ण इतिहास से रूबरू कराएंगी।
शेखावाटी विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. (डॉ.) अनिल कुमार राय ने बताया कि यह ऐतिहासिक टैंक और तोपें केवल सेना के हथियार नहीं, बल्कि शौर्य, बलिदान और पराक्रम के जीवंत प्रतीक हैं। जिससे युवाओं और विद्यार्थियों के मन में सेना के प्रति सम्मान, राष्ट्रप्रेम व देश भक्ति की भावना जाग्रत होगी। प्रो. राय ने बताया कि यह टैंक मंगलवार को किरकी, पुणे से शेखावाटी विश्वविद्यालय पहुंच गया और दोनों तोपें भी जबलपुर से जल्द ही यहां पहुंच जाएंगी। ये युद्ध-स्मृति चिन्ह विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार पर स्थित ‘शौर्य दीवार’ के पास स्थापित किए जाएंगे।

सिर्फ सैन्य अवशेष नहीं, प्रेरणा का केंद्र

कुलगुरु प्रो. (डॉ.) अनिल कुमार राय ने बताया कि ये टैंक सिर्फ सैन्य अवशेष नहीं हैं, बल्कि ये छात्रों को साहस, बलिदान और कर्तव्यनिष्ठा जैसे मूल्यों से परिचित कराते हैं। वे उन्हें रक्षा सेवाओं में करियर बनाने के लिए भी प्रोत्साहित करते हैं। विश्वविद्यालय परिसरों में ऐसे प्रतीक देश के युवा मन में राष्ट्रीय गौरव और देशभक्ति की भावना को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

जानिए, क्या है टी-55 टैंक की खासियत

टी-55 टैंक सोवियत संघ में निर्मित एक प्रमुख युद्धक टैंक है, जिसे भारतीय सेना ने 1960 के दशक में अपने बेड़े में शामिल किया था। लगभग 36 टन वजनी यह टैंक 100/105 मिमी की मुख्य तोप से लैस था। इस टैंक ने 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्धों में इसने निर्णायक भूमिका निभाई। विशेष रूप से 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में इस टैंक ने दुश्मन के टैंकों को ध्वस्त कर भारतीय सेना की विजय में अहम योगदान दिया। यही कारण है कि टी-55 आज भी भारतीय सेना के पराक्रम का प्रतीक माना जाता है।

दो तोपें और माउंटिंग की ऐतिहासिक भूमिका

सेना से मिली ये दो प्रतिघात-रहित एंटी-टैंक तोपें युद्ध के दौरान बख्तरबंद वाहनों को नष्ट करने में प्रभावी हथियार रही हैं। इन्हें जमीन से या हल्के वाहनों पर लगाकर प्रयोग किया जाता था। 1971 के युद्ध सहित कई अभियानों में इन तोपों ने टैंक-रोधी रणनीतियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

शेखावाटी का शौर्य: वीरों की भूमि की अमर गाथा

शेखावाटी अंचल सदियों से ‘वीरों की भूमि’ के रूप में प्रसिद्ध है। राजस्थान के कुल शहीदों में से लगभग हर दूसरा शहीद शेखावाटी क्षेत्र से आता है। 1971 के युद्ध में अकेले सीकर जिले के 50 से अधिक वीर सपूतों ने राष्ट्र की रक्षा में सर्वोच्च बलिदान दिया। कारगिल युद्ध हो या कोई अन्य मोर्चा, शेखावाटी के रणबांकुरों ने सदैव मातृभूमि की रक्षा में अपने प्राण न्योछावर किए हैं।
विश्वविद्यालय को मिले ये युद्ध-ट्रॉफी इसी अमर शौर्य और विजय की गाथा को जीवंत करती हैं।

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