नवलगढ़ में लोक आस्था और साम्प्रदायिक सद्भाव के प्रतीक लोकदेवता बाबा रामदेवजी का प्रसिद्ध लक्खी मेला सोमवार शाम बाबा की ज्योत प्रकट होने के साथ शुरू होगा। जैसे ही ज्योत प्रकट हुई, मंदिर परिसर जयकारों से गूंज उठा ।
भक्त सुबह से ही मंदिर पहुंचना शुरू हो गए थे और घंटों खड़े रहकर ज्योत प्रकट होने का इंतजार करते रहे। मेले की परंपरा के अनुसार सोमवार दोपहर तीन बजे रूप निवास पैलेस से निशान यात्रा प्रारंभ हुई। यात्रा में 501 निशान शामिल रहे। इस दौरान ‘साजन’ नाम का घोड़ा ध्वज लेकर पैलेस से मंदिर तक पहुंचा। पूरे मार्ग में श्रद्धालु जयकारे लगाते हुए साथ चलते रहे। जगह-जगह यात्रा का भव्य स्वागत किया गया।
‘साजन’ नवलगढ़ की पहचान रहे मशहूर ‘बादशाह’ घोड़े का बेटा है। बादशाह ने वर्षों तक मंदिर में धोक लगाकर परंपरा निभाई। अब उसके वंशज साजन ने यह जिम्मेदारी संभाली है। दूसरी बार ध्वज लेकर मंदिर पहुंचने वाले इस घोड़े को देखने और छूने के लिए श्रद्धालुओं में उत्साह रहता है। इसे बाबा का आशीर्वाद पाने का प्रतीक माना जाता है।
नवलगढ़ का बाबा रामदेवजी मंदिर लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। इसकी स्थापना 1776 में राजा नवलसिंह ने करवाई थी। कथा के अनुसार, दिल्ली के बादशाह से कर न चुका पाने पर कैद हुए राजा नवलसिंह को बाबा रामदेवजी की कृपा से चमत्कारिक ढंग से मुक्ति मिली। जेल से निकलते समय उन्हें एक घोड़ा मिला, जो तेज़ रफ्तार से दौड़ता हुआ नवलगढ़ लाकर वहीं ठहर गया। इसे चमत्कार मानकर राजा ने यहां मंदिर बनवाया और तभी से भादवा सुदी दशमी पर लक्खी मेले की परंपरा शुरू हुई।
आज यह मेला न केवल धार्मिक आयोजन है, बल्कि लोकगीत, लोकसंगीत और सामूहिक आस्था का अद्वितीय संगम है, जो हर साल लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।


